एक समय की बात है| प्रदीप खन्ना नाम के सज्जन दमे के मरीज़ थे| उन्हें अक्सर अपनी सांस रुकने पर कृतिम ऑक्सीजन--प्रणाली का सहारा लेना पड़ता था|
वह अपनी सामयिक चिकित्सा के लिए सफरी ऑक्सीजन-पैक सदा अपने साथ रखते थे| वह एक बार कानपुर से अपनी 14 वर्षीय पुत्री और संबंधियों के साथ अवध एक्सप्रेस के एक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में आगरा गये| प्रातः एक छोटे से स्टेशन पर चाय पीने के लिए यह सज्जन उतरे| अचानक गाड़ी चल पड़ी| बड़ी मुश्किल से यह सज्जन दौड़ते-दौड़ते सबसे आखिरी डिब्बे में चढ़े|












