Wednesday, 13 January 2010

सच्ची मदद


एक समय की बात है| प्रदीप खन्ना नाम के सज्जन दमे के मरीज़ थे| उन्हें अक्सर अपनी सांस रुकने पर कृतिम ऑक्सीजन--प्रणाली का सहारा लेना पड़ता था|

वह अपनी सामयिक चिकित्सा के लिए सफरी ऑक्सीजन-पैक सदा अपने साथ रखते थे| वह एक बार कानपुर से अपनी 14 वर्षीय पुत्री और संबंधियों के साथ अवध एक्सप्रेस के एक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में आगरा गये| प्रातः एक छोटे से स्टेशन पर चाय पीने के लिए यह सज्जन उतरे| अचानक गाड़ी चल पड़ी| बड़ी मुश्किल से यह सज्जन दौड़ते-दौड़ते सबसे आखिरी डिब्बे में चढ़े|  

Tuesday, 12 January 2010

राष्ट्र का अभ्युदय

दूसरे महायुद्ध की विभीषिका के फलस्वरुप जापान क्षत-विक्षत हो गया था| उसका समस्त व्यापार, उधोग, कृषि एवं अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई थी|

इस सबके बावजूद पिछले वर्षों में जापान का असाधारण अभ्युदय हो गया था|

वह संसार के सर्वाधिक उन्नतिशील औधोगिक राष्ट्रों में पहुँच गया है| जहाजों, मोटरों, कैमरों एवं बिजली के आधुनिकतम उपकरणों के निर्माण में जापान ने दूसरे देश को मात दे दी है| आविष्कारों एवं औधोगिक दृष्टि से जापान विश्व के पहले राष्ट्रों की पंक्ति में पहुँच गया है| एक गोष्ठी की चर्चा की गई कि जापान की देशभक्त जनता ने अपनी मातृभूमि के प्रति अपूर्व निष्ठा, कार्य के प्रति लगन और कठिन परिश्रम से अपने देश को यह स्थिति दिलवाई है| एक वक्त बोले- “संसार-भर में कोई भी नया आविष्कार या किसी भी प्रमुख विश्वभाषा का श्रेष्ठ ग्रंथ प्रकाशित होता है तो तीन महीनों के अन्दर उस आविष्कार का पूर्ण विवरण और इस नए ग्रंथ के जापानी अनुवाद का विश्वविधालय और लोकप्रिय संस्करण तैयार कर, प्रसारित कर, उसका लाभ जापानी जनता को पहुँच जाता है|”

Monday, 11 January 2010

अब काँटे चुभेंगे नहीं

महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले में आनन्दवन नामक एक बस्ती है| यहाँ पर जनसेवी बाबा आम्टे ने कुष्ठरोग से पीड़ित हजारों लोगों का रोग से मुक्त कर स्वावलम्बी बनाया|

एक दिन उस आनन्दवन में एक अंधे बालक ने बाबा से प्रार्थना की- “बाबा, गुलाब कैसा होता है? सब लोग गुलाब की प्रशंसा करते हैं| मुझे बताओ गुलाब कैसा होता है? कहते हैं कि उसका फूल खूब रंगीन और खुशबू से भरा होता है|” बाबा आम्टे उसे फूलों के उधान में ले गए| वहाँ तरह-तरह के फूलों के पौधे खिले हुए थे| बाबा बच्चे को गुलाब के पौधे के पास ले गए| पौधा फूलों से लदा था, गंद से सुवासित था| फूलों की महक से बालक ने अपना हाथ फूलों की ओर बढ़ाया, परंतु गुलाब का काँटा उसे चुभ गया| बालक ने तुरंत अपना हाथ हटा लिया|  

Sunday, 10 January 2010

ईमानदारी

बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा - "बीरबल! क्या हमारी सारी प्रजा ईमानदार है?"

"नहीं हुजूर! हर व्यक्ति में कहीं-न-कहीं थोड़ी-सी बेईमानी भी होती है, बस कुछ ही लोग होते हैं जो ईमानदार होते हैं किंतु उनकी गिनती इतनी कम होती है कि हमें यही कहना पड़ता है कि सभी बेईमान हैं|" बीरबल ने जवाब दिया|

बादशाह अकबर को बीरबल की बात सुनकर हैरानी तो हुई किन्तु फिर भी उन्हें यकीन नहीं आया कि उनकी प्रजा उनके प्रति बेईमान है| उन्होंने बीरबल को यह बात सिद्ध करने को कहा|

Saturday, 9 January 2010

अनुपम बलिदान

एक बार की बात है| गढ़वाल में वृक्षों की सहायता के लिए पर्वत पुत्रियों एवं हिमालय के पुत्रों ने वृक्षों से चिपककर उनकी रक्षा का व्यापक आंदोलन किया था|

वेदों में संदेश दिया गया था कि हरे पत्तों- केशों वाले प्राणियों के रक्षक वृक्ष नमस्कार के योग्य हैं| (वृक्षेभ्य! हरिकेशभ्यः नमः) वृक्षों एवं वनस्पतियों को सदा से प्राणियों एवं मानव का सहायक समझा जाता रहा है| मरुभूमि से व्याप्त राजस्थान में 70-80 गाँवों की विश्नोई बस्तियाँ आज भी वहाँ शादूस्थल या नखलिस्तान का रुप है| वहाँ खूब पेड़ हैं, चहचहाते पक्षी, कलख करते जलचर और मस्ती में झूमते वन प्राणी हैं, जो मानव के, विशेषतः इस पृथ्वी की संतानों के अदम्य उत्साह और उत्सर्ग का संदेश दे रहे हैं|

Friday, 8 January 2010

निर्भयता

‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ और हम इसे लेकर रहेंगे- का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बाल्यावस्था से ही कुछ उच्च सद्गुणी- सत्य भाषण एवं अदभूत साहस से परिपूर्ण थे|

अदभूत स्मरणशक्ति एवं गणित में उनकी प्रतिभा देखकर शिक्षक उनका सम्मान करते थे| बचपन से ही अंयाय वह कभी नहीं सहते थे| एक बार उनकी कक्षा के साथियों ने मूँगफली खाकर उसके छिलके कक्षा के कमरे में बिखेर दिए| गुरुजी ने कक्षा में आते ही लड़कों से छिलके उठाने के लिए कहा, परंतु बाल ने मूँगफली नहीं खाई थी, उसने छिलके उठाना स्वीकार नहीं किया| कक्षा के अध्यापक ने यह शिकायत बाल के पिता श्रीगंगाधर जी को पहुँचाई| पिता ने पुत्र का समर्थन किया और कहा- “बाल कभी बाहर खाने की चीजें नहीं खाता और हमेशा सच ही बोलता है|”

Thursday, 7 January 2010

राष्ट्र का सम्मान

एक समय की बात है| दिल्ली विश्वविय के भूतपूर्व कुलपति एवं भूतपूर्व संसद सदस्य डॉ० स्वरुप सिंह अपनी मित्र-मण्डली में बैठे थे|

चर्चा यह चली की अपने राष्ट्रीय गौरव को सर्वोपरि स्थान हमें किस प्रकार देना चाहिए| इस विषय में चर्चा चल ही रही थी कि डॉ० स्वरुप सिंह बोले- “मैं एक बार लंदन के बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में गया|

मैं जिस समय घर के बाहर गया था, मौसम बरसात का था| बारिश से बचने के लिए मैंने ओवरकोट पहना हुआ था| मैंने उस स्टोर में एक काउंटर पर घड़ियाँ देखी- एक से एक बढ़िया, शानदार और टिकाऊ| मैंने एक अच्छी घड़ी पसंद की; उस घड़ी का भुगतान किया|

Wednesday, 6 January 2010

न माया मिली न राम

सुंदन वन में एक शेर रहता था| एक दिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था| उस दिन उसे आसपास कोई शिकार नहीं मिला था| अभी वह थककर बैठा ही था कि कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का शावक दिखाई दिया| वह पेड़ कि छाया में उछल-कूद रहा था| शेर उसे पकड़ने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ा| खरगोश शावक ने शेर को अपनी ओर आते देखा तो वह जान बचाने के लिया दौड़ा|

Tuesday, 5 January 2010

स्वार्थ त्याग

बहुत पुरानी बात है| उन दिनों इंग्लैंड और स्पेन के मध्य लड़ाई चल रही थी| लड़ाई के मोर्चे पर अंग्रेजों का एक वीर योद्धा सर किल्पि सिडनी घायल होकर गिर गया|

उस समय वह कई भीषण चोटों और प्यास से तड़प रहा था|

Monday, 4 January 2010

पेड़ का मालिक कौन?

केशव और राघव दो पड़ोसी थे| उनके मकान के सामने ही एक आम का पेड़ था| उन दोनों के बीच पेड़ के मालिकाना हक को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया| बात काफी आगे बढ़ गई और न्याय के लिए दोनों बादशाह अकबर के पास पहुंचे|

"हुजूर! यह पेड़ मेरा है...मैंने सात वर्षों तक इसे सींचकर पौधे से पेड़ बनाया है| इस साल यह पेड़ पहली बार फल दे रहा है तो राघव कहता है कि यह पेड़ उसका है|" केशव ने दुहाई दी|

Sunday, 3 January 2010

लालची कुत्ता

एक कुत्ते को घुमते-फिरते अचानक हड्डी का एक टुकड़ा मिला| उसने वह हड्डी मुहँ में दबा ली, इधर-उधर देखा, उसे कोई दूसरा कुता नज़र नही आया| इससे पहले कि कोई दूसरा कुता आकर उस हड्डी पर अपना हक जताता वह हड्डी लेकर वहाँ से दौड़ पड़ा|

सोचा कि उस हड्डी को ऐसी जगह ले जाकर खाएगा जहाँ उसे कोई दूसरा तंग करने वाला न हो| कुता भागते-भागते नदी किनारे पहुँचा| वह लकड़ी के पुल से नदी पार करने लगा| अचानक उसने नदी की तरफ़ देखा| पानी में उसे अपनी परछाई दिखाई दी| कुत्ते को लगा कि वह कोई अन्य कुता है और उसके मुहँ में भी हड्डी है| उस कुत्ते के मन में लालच आ गया| सोचा, क्यों न उस कुत्ते से हड्डी छीन लूँ|

Saturday, 2 January 2010

विनम्रता

एक समय की बात है| अचानक ओलों की वर्षा से सारी फसल नष्ट हो गई| कुरू प्रदेश में एक गाँव में हाथीवान रहते थे|

इसी गाँव में एक निर्धन ऋषि उशस्ति चाकृायण अपनी पत्नी के साथ रहने लगे| गाँव में कहीं अनाज का दाना नहीं मिला| भूख से ऋषि अत्यधिक व्याकुल हो उठे| उन्होंने देखा कि एक हाथीवान गले-सड़े उड़द खा रहा था| ऋषि ने हाथीवान से उन जूठे उड़दों की ही भीख माँगी| ऋषि ने जूठे उड़दों से अपनी भूख मिटाई और बचे उड़द लाकर अपनी पत्नी को दे दिए| पत्नी पहले ही भीख माँगकर अपनी भूख को मिटा चुकी थी| वे जूठे उड़द पत्नी के अगले दिन के लिए संभालकर रख दिए|

Friday, 1 January 2010

बेवक्त के गीत

एक बेचारा गधा भूखा प्यासा इधर-उधर घूमा करता था| एक दिन उसकी मित्रता एक गीदड़ के साथ हो गई| गीदड़ के साथ रहकर वह गधा खूब मौज मस्ती मारता| इस प्रकार वह दिन रात मोटा होने लगा|

एक रात वह गीदड़ के साथ खरबूजे के खेतों में खूब माल खा रहा था, खाते-खाते गधे ने कहा-मामा क्या मैं तुम्हें राग सुनाऊं मुझे बहुत अच्छा राग आता है| गीदड़ बोला, ओ भांजे हम यहां चोरी करने आये हैं, यह राग गाने का समय नहीं है| कहा भी है कि खांसी वाले आदमी को चोरी नहीं करनी चाहिए, रोगी को जबान का स्वाद छोड़ देना चाहिए| तुम्हारा गाना सुनकर खेत के रखवाले पकड़ लेंगे या फिर आकर मारेंगे| मामा तुम जंगली होकर गीत का आनन्द नहीं जानते हो| विद्या तो कला है जिस पर देवता भी मोहित हो जाते हैं|